खरोष्ठी लिपि

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तारिम द्रोणी मँ मिललौ खरोष्ठी मँ लिखलौ एगो कागज क टुकड़ा (दोसरौ सँ पाँचमां सदी ईसवी)

खरोष्ठी सिन्धु घाटी केरऽ चित्रलिपि के अलावा भारत केरऽ दू सबसँ पुरानऽ लिपि म॑ स॑ एक छै। दायाँ सँ बायाँ दिस लिखलौ जाय छेलै। सम्राट अशोक शाहबाजगढ़ी आरो मनसेहरा क शिलालेख मात्र खरोष्ठी लिपि मँ लिखलौ गेलौ छेलौ| एकरौ प्रसार क देश आरु लौकि क सीमा ब्राह्मी सँ संकीर्ण छेलै आरु बिना कोय प्रतिनिधि लिपि के जन्म देलौ योहो देश सँ विलुप्त होय गेलै। ब्राह्मी सँ दोसरौ परिष्कृत लिपि क अस्तित्व व देश क बायाँ सँ दायाँ दिस लिखै लेली स्वाभाविक प्रवृत्ति यही लिपि क विलुप्त होय के कारण होय सकै छै।

एकरहो देखौ[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]

बाहरी कड़ी[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]

संदर्भ[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]