कोल्हापूर
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कोल्हापुर महाराष्ट्र प्रान्त केरऽ एगो शहर छेकै । मुंबई से 400 किलोमीटर दूर कोल्हापुर महाराष्ट्र का एक जिला है। मुंबई से पास होने के कारण बड़ी संख्या में पर्यटक सप्ताहंत में यहां आते हैं। यह स्थान ऐतिहासिक तथा धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। कोल्हापुर का मराठी कला के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विशेष रूप से कोल्हापुरी हस्तशिल्प बहुत प्रसिद्ध है। कोल्हापुरी चप्पलें तो देश विदेश में मशहूर हैं ही। प्रकृति, इतिहास, संस्कृति और आध्यात्म से रूबरू कराता कोल्हापुर सभी आयु के लोगों को कुछ न कुछ अवश्य देता है।
मुख्य आकर्षण
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]महालक्ष्मी मंदिर
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]यह मनमोहक मंदिर कोल्हापुर तथा आसपास के हजारों श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है। यह मंदिर देवी महालक्ष्मी को समर्पित है जिन्हें अंबा बाई के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर परिसर में काशी विश्वेश्वर, कार्तिकस्वामी, सिद्धिविनायक, महासरस्वती, महाकाली, श्री दत्ता और श्री राम भी विराजमान हैं। महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण कार्य चालुक्य शाससक करनदेव ने 7वीं शताब्दी में करवाया था। बाद में 9वीं शताब्दी में शिलहार यादव ने इसे विस्तार प्रदान किया। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में देवी महालक्ष्मी की 40 किलो की प्रतिमा स्थापित है।
नया महल और छत्रपति साहू संग्रहालय
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]1884 में बने इस महल का महाराजा का नया महल भी कहा जाता है। इसका डिजाइन मेजन मंट ने बनाया था। महल के वास्तुशिल्प पर गुजरात और राजस्थान के जैन व हिंदू कला तथा स्थानीय रजवाड़ा शैली का प्रभाव है। महल के प्रथम तल पर वर्तमान राजा रहते हैं जबकि भूतल पर वस्त्रों, हथियारों, खेलों, आभूषणों आदि का संग्रह प्रदर्शित किया गया है। ब्रिटिश वायसराय और गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से लिखे गए पत्र भी यहां देखे जा सकते हैं। महल के अंदर ही शाहजी छत्रपति संग्रहालय भी है। यहां पर महाराज शाहजी छत्रपति की बहुत सी वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं जैसे बंदूक, ट्रॉफियां और कपड़े आदि।
पनहला किला
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]कोल्हापुर का पनहला किला समुद्र तल से 3127 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां की प्राकृतिक खूबसूरती और शांत अपनी ओर खींचती है। पनहला का नाम मिला पन्न्ना नामक जनजाति के नाम पर पड़ा जो आरंभ में इस किले पर शासन करती थी। इस किले का निर्माण 1052 में राजा भेज ने करवाया था। बाद में शिलहार और यादव वंशों ने भी यहां राज किया। वीर मराठा शिवाजी ने 1659 में इस स्थान को आदिल शाह के नियंत्रण से मुक्त कराया। 1782 तक पनहला रानी ताराबाई के राज्य की राजधानी रहा।
काशी विश्वेश्वर मंदिर
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]काशी विश्वेश्वर मंदिर महालक्ष्मी मंदिर के उत्तर में घाटी-दर्वजा परिसर में स्थित है। मंदिर का निर्माण्ा 6ठी-7वीं शताब्दी के दौरान किया गया था और इसका विस्तार राजा गोंडाडिक्स ने किया था। कबीर महात्मय के अनुसार इस स्थान पर अगस्ति ऋषि, लोपमुद्रा, राजा प्रल्हाद और राजा इंद्रसेन दर्शन करने आए थे। मंदिर बन ने से पूर्व यहां पर दो जलकुंड थे- काशी और मणी कमिका जिनमें से मणीकमिका पूरी तरह नष्ट हो गया। इसके स्थान पर महालक्ष्मी उद्यान बनाया गया। कहा जाता है कि बाहर के छोटे मंडप में एक प्राचीन गुफा है जो ध्यान साधना के उद्देनश्य से बनाई गई थी। प्रवेश स्थान पर गणेश, तुलसी आदि की प्रमिमाएं हैं। मंदिर के पास ही जोतिबा का छोटा सा मंदिर भी है।
जोतिबा मंदिर
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]जोतिबा कोल्हापुर के उत्तर में पहाड़ों से घिरा एक खूबसूरत मंदिर है। इसका निर्माण 1730 में नवाजीसवा ने करवाया था। मंदिर का वास्तु प्राचीन शैली का है। यहां स्थापित जोतिबा की प्रतिमा चारभुजाधारी है। माना जाता है कि जोतिबा भैरव का पुनर्जन्म था। उन्होंने रत्नासुर से लड़ाई में महालक्ष्मी का साथ दिया था। रत्नासुन के नाम पर ही इस गांव का नाम रत्नागिरी पड़ा। बाद में गांव वालों ने इसका नाम जोतिबा रख दिया। चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। उस समय गुलाब उड़ाकर भक्त अपनी श्रद्धा का परिचय देते हैं। उस समय पहाड़ भी मानो गुलाबी रंग में रंग जाते हैं।
रनकला झील
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]महालक्ष्मी मंदिर के पश्चिम में स्थित रनकला झील यहां के स्थानीय लोगों के साथ-साथ सैलानियों के बीच भी लोकप्रिय है। झील का निर्माण स्वर्गीय महाराजा श्री शाहू छत्रपति ने करवाया था। झील के आसपास चौपाटी और अनेक उद्यान हैं।
दाजीपुर अभ्यारण्य
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]दाजीपुर बिसन अभ्यारण्य कोल्हापुर और सिंधुदुर्ग जिले की सीमा पर स्थित है। इस प्रसिद्ध पर्यटक स्थल में पशु-पक्षियों की अनेक प्रजातियां पाई जाती है। यहां चारों ओर प्रकृति की खूबसूरती बिखरी हुई है। यह जंगल गावा भैंसों के लिए जाना जाता है। इसके अलावा जंगली हिरन, चीतल आदि भी यहां देखे जा सकते हैं। जंगल में गंगनगिरी महाराजा का मठ भी है। वनस्पतिशास्त्र के छात्रों के लिए यह स्थान बहुत ज्ञानवर्धक है। रोमांच के शौकीनों के लिए यह स्थान स्वर्ग है। ट्रैकिंग का मजा लेने के लिए अनेक लोग यहां आते हैं। सरह च्हेन इस थे मोस्त अम। इन्ग पेर्सोन ओन थिस प्लनेत्। इ लोवे हेर्। अ लोत्। अस्द्फ्घ्ज्क्ल्। :) म्व्हहह ल ल ल ल क अव्जेर्ह्फ्वेउइर्फ् एव्स्रुह्फेअ र्
टाउन हॉल
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]कोल्हापुर शहर के बीचों बीच स्थित इस इमारत का निर्माण 1872-1876 के बीच किया गया था। यहां पर संग्रहालय भी है जिसमें ऐतिहासिक चीजें देखी जा सकती हैं। संग्रहालय में ब्रह्मपुरी से लाई गई वस्तुएं, प्राचीन मूर्तियां, सुप्रसिद्ध चित्रकारों द्वारा बनाए गए चित्र, कलाकृतियां, प्राचीन सिक्के, कढ़ाईदार सामान, वस्त्र, तलवारें, बंदूर आदि रखे गए हैं। टाउन हॉल परिसर में सरकारी कार्यालय, कोर्ट, सरकारी अस्पताल, टेलिफोन कार्यालय हैं। इसलिए यहां हमेशा भीड़ भाड़ रहती है। यहां के उद्यान में विशाल फव्वारा, कुड और महादेव मंदिर है।
आवागमन
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]- वायु मार्ग
नजदीकी हवाई अड्डा बेलगांव में है जो कोल्हापुर से 150 किलोमीटर दूर है।
- रेल मार्ग
यहां पुणे-मिरज-कोल्हापुर सेक्शन का रेलवे स्टेशन है जो भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
- सड़क मार्ग
कोल्हापुर पुणे-बैंगलोर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 4 पर स्थित है। कोल्हापुर से मुंबई, पणजी, मिराज, सांगली, पुणे, सतारा, सावंतवाड़ी, सोलापुर और अन्य कई जगहों के लिए राज्य परिवहन की नियमित बस सेवा उपलब्ध है।
उद्योग और व्यापार
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]यहाँ के उद्योगों में वस्त्र निर्माण, इंजीनियरिंग उत्पाद उद्योग और चीनी प्रसंस्करण शामिल है। पश्चिमी घाटी और वर्णा नदी के किनारे गन्ना उत्पादन के कारण चीनी मिलों की संख्या बढ़ी है। यहाँ दुग्ध उत्पादन और प्रसंस्करण व मुर्गीपालन महत्त्वपूर्ण सहायक आर्थिक गतिविधियाँ हैं। कोल्हापुर के दक्षिण में गोकुल शिरगांव नामक नया शहरी क्षेत्र है। जो दुग्ध उत्पादन और औषधि निर्माण इकाइयों के लिए ख़ास तौर पर प्रसिद्ध है। इस प्रमुख गन्ना उत्पादन क्षेत्र में चीनी मिलें आम है। ज़िले के अन्य स्थानों को उनकी कुछ विशिष्टताओं के लिए जाना जाता है। इचलकरंजी को हथकरघा और विद्युतचालित करघे के लिए हुपारी को चांदी के आभूषणों और कापशी को चमड़े के सामान के लिए जाना जाता है।
नरसिंह वाडी रत्नगिरि और बाहुबली नगर धार्मिक महत्त्व के स्थान है।
जनसंख्या
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]2001 की जनगणना के अनुसार इस क्षेत्र की जनसंख्या 4,85,183 है, ज़िले की कुल जनसंख्या 35,15,413 है।