अंगुत्तरनिकाय मँ 11 'निपात' (अध्याय) छै जेकरा मँ 1 सँ लै क 11 क संख्या के क्रम मँ भगवान बुद्ध क उपदेश संग्रहित करलौ गेलौ छै। प्रत्येक अंक क संख्या एक अध्याय या निपात छै, जे 'अंक'-वार विषय क प्रतिपादनकरै छै। प्रथम निपात क नाँव 'एककनिपात' छेकै जेकरा मँ धम्म (धर्म) क व्याख्या 'एक' प्रकार सँ करलौ गेलौ छै। द्वितीय निपात क नाँव 'दुकनिपात' छेकै आरू ओकरा मँ धर्म क व्याख्या 'दू' दृष्टि सँ करलौ गेलौ छै। इ रंगकी सँ क्रमशः एकादसक-निपात तक ग्यारह-ग्यारह प्रकार सँ धर्म क व्याख्या करलौ गेलौ छै। एकक-निपात सँ अंक मँ वृद्धि होतँ हुअ दुक-तिक-चतुक्क-पञ्चक-छक्क-सत्तक-अट्ठक-नव-दसक-एकादसक इ प्रकार क्रम सँ 'अंक मँ वृद्धि' (अंकोत्तर) चलै छै। अतः ‘अंगुत्तरनिकाय’ (अंकोत्तरनिकाय) इ नाम पूर्णतः सार्थक तथा समुच्चे प्रतीत होय छै। वस्तुतः अंगुत्तरनिकाय, एकोत्तर आगम क शैली मँ रचित ग्रन्थ छेकै जौँ शैली क अनेक सुत्तपिटक मँ अनुसरण मिलै छै।
अंगुत्तरनिकाय मँ 11 निपात छै जेकरौ नाँव निम्नलिखित छै-
- एककनिपात
- दुकनिपात
- तिकनिपात
- चतुक्कनिपात
- पञ्चकनिपात
- छक्कनिपात
- सत्तकनिपात
- अट्ठकादिनिपात
- नवकनिपात
- दसकनिपात
- एकादसकनिपात