सिख धर्म
साँचा:ज्ञानसन्दूक व्यक्ति साँचा:सिख धर्म सन्दूक सिख धर्म (खालसा या सिखमत ;पंजाबी: ਸਿੱਖੀ) 15वीं सदी म जेकरु शुरुआत गुरु नानक देव जी न करने छेलै। सिख के धार्मिक ग्रन्थ श्री आदि ग्रंथ साहिब या श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी आरै दसम ग्रन्थ छीकै। सिख धर्म म इनको धार्मिक स्थल क गुरुद्वारा कहै छै। आमतौर प सिख क दस सतगुर मानलो जाय छै, लेकिन सिख क धार्मिक ग्रंथ म छः गुरु सहित तीस भगत क बानी छै, जिनको की सामान सिख क सिख मार्ग प चलै के लेली महत्त्वपूर्ण मानलो जाय छै।
1469 ईस्वी में पंजाब में जन्मे नानक देव ने गुरमत को खोजा और गुरमत की सिख्याओं को देश देशांतर में खुद जा कर फैलाया था। सिख उन्हें अपना पहला गुरु मानते हैं। गुरमत का परचार बाकि 9 गुरुओं ने किया। 10वे गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ये परचार खालसा को सोंपा और ज्ञान गुरु ग्रंथ साहिब की सिख्याओं पर अम्ल करने का उपदेश दिया। इसकी धार्मिक परम्पराओं को गुरु गोबिन्द सिंह ने 30 मार्च 1699 के दिन अंतिम रूप दिया।[१] विभिन्न जातियों के लोग ने सिख गुरुओं से दीक्षा ग्रहणकर ख़ालसा पन्थ को सजाया। पाँच प्यारों ने फिर गुरु गोबिन्द सिंह को अमृत देकर ख़ालसे में शामिल कर लिया।[२] इस ऐतिहासिक घटना ने सिख पंंथ के तक़रीबन 300 साल इतिहास को तरतीब किया। संत कबीर, धना, साधना, रामानंद, परमानंद, नामदेव इतियादी, जिन की बानी आदि ग्रंथ में दर्ज है, उन भगतों को भी सिख सत्गुरुओं के सामान मानते हैं और उन कि सिख्याओं पर अमल करने कि कोशिश करते हैं। सिख एक ही ईश्वर को मानते हैं, जिसे वे एक-ओंकार कहते हैं। उनका मानना है कि ईश्वर अकाल और निरंकार है।