दीपावली

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दीपावली दीपॉ के त्यौहार छेकै जेकरा मं दीप क पंक्ति मं सजाय क जराय छै आरू प्रकाश फैलाय छै। दीपावली शब्द रॉ उत्पत्ति संस्कृत के दू शब्द 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'श्रृंखला' के मिश्रण सं होलॉ छै. आध्यात्मिक रूप सं इ 'अन्धकार प प्रकाश रॉ विजय' के दर्शाय छै।

पारंपरिक कथा[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]

आप सभी ये तो जानते होंगे की दीपावली के दिन प्रभु श्री राम जी ने रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे जिसके उपलक्ष्य में अयोध्यावासियों ने दीप जला कर उनका भव्य स्वागत किया था, यह दिन कार्तिक माह के अमावस्या तिथि पर पड़ता है. एक पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण कश्यप का वध किया था. दैत्यराज की मृत्यु पर प्रजा ने घी के दिए जलाकर दीपावली मनाई थी.

कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को किया था. इस ख़ुशी में अगले दिन अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जला कर खुशियाँ मनाई थी.

राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब शिव जी स्वयं उनके चरणों में लेट गए. उनके शरीर के स्पर्श मात्र देवी का क्रोध समाप्त हो गया. इसी दिन उनके रौद्र रूप काली की भी विधान है.

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार दीपावली के दिन ही माता लक्ष्मी दूध के सागर जिसे दुधिया सागर के नाम से जाना जाता है से उत्पन्न हुईं थी और उसके 1 वर्ष बाद उनका विवाह भगवन विष्णु से उसी कार्तिक माह के अमावस्या के रात करा दिया गया. इस पवित्र विवाह को चिन्हित करने के लिए दीपो को पंक्ति में सजाया गया और उत्सव मनाया गया. जिस तिथि माता लक्ष्मी उत्पन्न हुई थीं उसी तिथि को भगवन कुबेर भी प्रकट हुए थे. हालांकि ये कथा राम जी के अयोध्या लौटने से भी पौराणिक काल की है. अब आप इस विषय पर क्या सोचते हैं हमे कमेंट में बताएं.

वैज्ञानिक कारण[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]

हम ये जानते हैं, दीपावली के समय के आस पास धान की फसलें लगभग पकने को तैयार हो जाते हैं, और पौराणिक काल से ले कर अभी तक भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर ज्यादा निर्भर करती है. किसानो के लिए उनकी फसल ही सब कुछ होती है. दरअसल ये वो समय होता है जब मौसम में अचानक से बदलाव होता है। गर्मी के बाद शरद ऋतु का आगमन होता है। मौसम के इस बदलते पड़ाव पर फसल के कीटों का प्रकोप एकदम से शुरू होता है। ऐसे में वैज्ञानिक तक इस बात को ¬मानते हैं कि सरसों के तेल के जलने से जो धुआं वातावरण में घुलता है उसकी खुशबू कीड़े को अपनी ओर आकर्षित करती है।

ऐसे में दिवाली पर हर कोई अपने-अपने घर पर सरसों के तेल का दिया जलाता है। इतनी बड़ी तादाद में तेल का दिया जलने के कारण उससे उठने वाली खुशबू से आसपास के सारे कीड़े उनकी ओर आकर्षित होते हैं। उसके बाद दिये में ही जलकर मर जाते हैं। वैसे आमतौर पर आपने भी देखा होगा कि जलती लाइट के आसपास कीड़े बहुत आकर्षित होते हैं। ठीक वैसे ही जलते दीपक के पास भी होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसी वजह से दिवाली पर दियों के जलाने को शुभ के साथ-साथ जरूरी भी माना जाता है।

हालाँकि भारत के अधिकतर पर्व फसलों से जुडी हैं और हर पर्व का एक ही लक्ष्य होता है सुख और समृद्धि देना, यदि किसानो के घर अनाज से भरे होंगे तभी तो हम पेट भर भोजन कर पाएंगे.

दीपावली सं मिलतं जुलतं परब[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]

आपको ये जान कर हैरानी होगी की पश्चिमी देश भी दीपावली से मिलते जुलते पर्व “हेलोवीन” को मनातें हैं, वे भी जैक ओ लालटेन जलाते हैं जो की सीधे सीधे फसल से जुडी है. अब ये तो आश्चर्य की बात है की हम एक दुसरे से जुड़े हुए हैं फिर चाहे ये पर्व हो या भाषा.