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यमुना नदी

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आगरा में यमुना नदी
यमुना त्रिवेणी संगम प्रयाग में
वृंदावन के पवित्र केशीघाट पर यमुना
सुबह के धुँधलके में यमुनातट पर ताज

यमुना भारत की एक नदी है। यह गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है जो यह यमुनोत्री (उत्तरकाशी से ३० किमी उत्तर, गढ़वाल में) नामक जगह से निकलती है और प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा से मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में चम्बल, सेंगर, छोटी सिन्ध, बतवा और केन उल्लेखनीय हैं। यमुना के तटवर्ती नगरों में दिल्ली और आगरा के अतिरिक्त इटावा, काल्पी, हमीरपुर और प्रयाग मुख्य है। प्रयाग में यमुना एक विशाल नदी के रुप में प्रस्तुत होती है और वहाँ के प्रसिद्ध ऐतिहासिक किले के नीचे गंगा में मिल जाती है।

ब्रज की संस्कृति में यमुना का महत्वपूर्ण स्थान है ।

यह यमुनोत्री नामक जगह से निकलती है। यह गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यमुना का उद्गम स्थान हिमालय के हिमाच्छादित श्रंग बंदरपुच्छ ऊँचाई 6200 मीटर से 7 से 8 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित कालिंद पर्वत है, जिसके नाम पर यमुना को कालिंदजा अथवा कालिंदी कहा जाता है। अपने उद्गम से आगे कई मील तक विशाल हिमगारों और हिम मंडित कंदराओं में अप्रकट रुप से बहती हुई तथा पहाड़ी ढलानों पर से अत्यन्त तीव्रतापूर्वक उतरती हुई इसकी धारा यमुनोत्तरी पर्वत (२०,७३१ फीट ऊँचाई) से प्रकट होती है। वहाँ इसके दर्शनार्थ हजारों श्रद्धालु यात्री प्रतिवर्ष भारत वर्ष के कोने-कोने से पहुँचते हैं।

यमुनोत्तरी पर्वत से निकलकर यह नदी अनेक पहाड़ी दरों और घाटियों में प्रवाहित होती हुई तथा वदियर, कमलाद, वदरी अस्लौर जैसी छोटी और तोंस जैसी बड़ी पहाड़ी नदियों को अपने अंचल में समेटती हुई आगे बढ़ती है। उसके बाद यह हिमालय को छोड़ कर दून की घाटी में प्रवेश करती है। वहाँ से कई मील तक दक्षिण पश्चिम की और बहती हुई तथा गिरि, सिरमौर और आशा नामक छोटी नदियों को अपनी गोद में लेती हुई यह अपने उद्गम से लगभग ९५ मील दूर वर्तमान सहारनपुर जिला के फैजाबाद ग्राम के समीप मैदान में आती है। उस समय इसके तट तक की ऊँचाई समुद्र सतह से लगभग १२७६ फीट रह जाती है।

भुवनभास्कर सूर्य इसके पिता, मृत्यु के देवता यम इसके भाई और भगवान श्री कृष्ण इसके परि स्वीकार्य किये गये हैं। जहाँ भगवान श्री कृष्ण ब्रज संस्कृति के जनक कहे जाते हैं, वहाँ यमुना इसकी जननी मानी जाती है। इस प्रकार यह सच्चे अर्थों में ब्रजवासियों की माता है। अतः ब्रज में इसे यमुना मैया कहते है। ब्रह्म पुराण में यमुना के आध्यात्मिक स्वरुप का स्पष्टीकरण करते हुए विवरण प्रस्तुत किया है - "जो सृष्टि का आधार है और जिसे लक्ष्णों से सच्चिदनंद स्वरुप कहा जाता है, उपनिषदों ने जिसका ब्रह्म रुप से गायन किया है, वही परमतत्व साक्षात् यमुना है। गौड़िय विद्वान श्री रुप गोस्वामी ने यमुना को साक्षात् चिदानंदमयी बतलाया है। गर्ग संहिता में यमुना के पचांग - १.पटल, २. पद्धति, ३. कवय, ४. स्तोत्र और ५. सहस्त्र नाम का उल्लेख है।

पश्चिमी हिमालय से निकल कर उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा की सीमा के सहारे 95 मील का सफर कर उत्तरी सहारनपुर (मैदानी इलाका) पहुँचती है। फिर यह दिल्ली, आगरा से होती हुई इलाहाबाद में गंगा नदी में मिल जाती है।

नदी यमुना एक काफी गहरी, एक उथले गहराई है, यह औसत गहराई 10 फीट (3 मीटर) और अधिकतम गहराई 35 फीट (11 मीटर) है। दिल्ली के निकट नदी में, यह अधिकतम गहराई 68 फीट (20 मीटर) है। आगरा में, यह गहराई 3 फुट है (1 मीटर). नदी का ही गहराई 30 फीट (9 मीटर) बढ़ती.

मैदान में जहाँ इस समय यमुना का प्रवाह है, वहाँ वह सदा से प्रवाहित नहीं होती रही है। पौराणिक अनुश्रुतियों और ऐतिहासिक उल्लेखों से ज्ञात होता है, यद्यपि यमुना पिछले हजारों वर्षों से विधमान है, तथापि इसका प्रवाह समय समय पर परिवर्तित होता रहा है। अपने सुधीर्ध जीवन काल में इसने जितने स्थान बदले हैं, उनमें से बहुत कम की ही जानकारी प्राप्त हो सकी है।

प्रागऐतिहासिक काल में यमुना मधुबन के समीप बहती थी, जहाँ उसके तट पर शत्रुध्न जी ने सर्वप्रथम मथुरा नगरी की स्थापना की थी। वाल्मीकि रामायण और विष्णु पुराण में इसका विवरण प्राप्त होता है। १ कृष्ण काल में यमुना का प्रवाह कटरा केशव देव के निकट था। सत्रहवीं शताबदी में भारत आने वाले यूरोपीय विद्वान टेवर्नियर ने कटरा के समीप की भूमि को देख कर यह अनुमान लगा लिया था कि वहाँ किसी समय यमुना की धारा थी। इस संदर्भ में ग्राउज़ का मत है कि ऐतिहासिक काल में कटरा के समीप यमुना के प्रवाहित होने की संभावना कम है, किन्तु अत्यन्त प्राचीन काल में वहाँ यमुना अवश्य थी। २ इससे भी यह सिद्ध होता है कि कृष्ण काल में यमुना का प्रवाह कटरा के समीप ही था।

कनिधंम का अनुमान है, यननानी लेखकों के समय में यमुना की प्रधान धारा या उसकी एक बड़ी शाखा कटरा केशव देव की पूर्वी दीवाल के नीचे बहती होगी। ३ जव मथुरा में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार गो गया और यहाँ यमुना के दोंनों ओर अनेक संधारम बनाये गये, तव यमुना की मुख्य धारा कटरा से हटकर प्रायः उसी स्थान पर बहती होगी, जहाँ वह अब है, किन्तु उसकी कोई शाखा अथवा सहायक नहीं कटरा के निकट भी विधमान थी। ऐसा अनुमान है, यमुना की वह शाखा बौद्ध काल के बहुत बाद तक संभवतः सोलहवीं शताब्दी तक केशव देव मन्दिर के नीचे बहती रही थी। पहले दो बरसाती नदियाँ 'सरस्वती' और 'कृष्ण गंगा' मथुरा के पश्चिमी भाग में प्रवाहित होकर यमुना में गिरती थीं, जिनकी स्मृति में यमुना के सरस्वती संगम और कृष्ण गंगा नामक घाट हैं। संभव है यमुना की उन सहायक नादियों में से ही कोई कटरा के पास बहती रही हो।

  • पुराणों से ज्ञात होता है, प्राचीन वृन्दावन में यमुना गोवर्धन के निकट प्रवाहित होती थी। जबकि वर्तमान में वह गोवर्धन से लगभग ४ मील दूर हो गई है। गोवर्धन के निकटवर्ती दो छोटे ग्राम 'जमुनावती' और परसौली है। वहाँ किसी काल में यमुना के प्रवाहित होने उल्लेख मिलते हैं।

वल्लभ सम्प्रदाय के वार्ता साहित्य से ज्ञात होता है कि सारस्वत कल्प में यमुना नदी जमुनावती ग्राम के समीप बहती थी। उस काल में यमुना नदी की दो धाराऐं थी, एक धारा नंदगाँव, वरसाना, संकेत के निकट बहती हुई गोवर्धन में जमुनावती पर आती थी और दूसरी धारा पीरघाट से होती हुई गोकुल की ओर चली जाती थी। आगे दानों धाराएँ एक होकर वर्तमान आगरा की ओर बढ़ जाती थी।

परासौली में यमुना को धारा प्रवाहित होने का प्रमाण स. १७१७ तक मिलता है। यद्यपि इस पर विश्वास होना कठिन है। श्री गंगाप्रसाद कमठान ने ब्रजभाषा के एक मुसलमान भक्त कवि कारबेग उपमान कारे का वृतांत प्रकाशित किया है। काबेग के कथनानुसार जमुना के तटवर्ती परासौली गाँव का निवासी था और उसने अपनी रचना सं १७१७ में सृजित की थी।

वर्तमान समय में सहारनपुर जिले के फैजाबाद गाँव के निकट मैदान में आने पर यह आगे ६५ मील तक बढ़ती हुई हरियाणा के अम्बाला और करनाल जिलों को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और मुजफ्फर नगर जिलों से अलग करती है। इस भू-भाग में इसमें मस्कर्रा, कठ, हिंडन और सबी नामक नदियाँ मिलती हैं, जिनके कारण इसका आकार बहुत बढ़ जाता है। मैदान में आते ही इससे पूर्वी यमुना नहर और पश्चिमी नहर निकाली जाती हैं। ये दोनों नहरें यमुना से पानी लेकर इस भू-भाग की सैकड़ों मील धरती को हरा-भरा और उपज सम्पन्न बना देती हैं।

इस भू-भाग में यमुना की धारा के दोनों ओर पंजाब और उत्तर प्रदेश के कई छोटे बड़े नगरों की सीमाएँ हैं, किन्तु इसके ठीक तट पर बसा हुआ सबसे प्राचीन और पहला नगर दिल्ली है, जो लम्बे समय से भारत की राजधानी है। दिल्ली के लाखों नर-नारियों की आवश्यकता की पूर्ति करते हुए और वहाँ की ढेरों गंदगी को बहाती हुई यह ओखला नामक स्थान पर पहुँचती है। यहाँ पर इस पर एक बड़ा बांध बांधा गया है जिससे नदी की धारा पूरी तरह नियंत्रित कर ली गयी है। इसी बांध से आगरा नहर निकलती है, जो हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सैकड़ों मील भूमि को सिंचित करती है। दिल्ली से आगे यह हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा बनाती हुई तथा हरियाणा के फरीदाबाद जिले को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले से अलग करती हुई उत्तर प्रदेश में प्रवाहित होने लगती है।

ब्रज प्रदेश की सांस्कृतिक सीमा में यमुना नदी का प्रथम प्रवेश बुलंदशहर जिला की खुर्जा तहसील के 'जेबर' नामक कस्बा के निकट होता है। वहाँ से यह दक्षिण की ओर बहती हुई फरीदाबाद (हरियाणा) जिले की पलवल तहसील और अलीगढ़, उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले की खैर तहसील की सीमा निर्मित करती है। इसके बाद यह छाता तहसील के शाहपुर ग्राम के निकट यह मथुरा जिले में प्रवेश करती है और मथुरा जिले की छाता और भाँट तहसीलों की सीमा निर्धारित करती है। जेबर से शेरगढ़ तक यह दक्षिणाभिमुख प्रवाहित होती है उसके बाद कुछ पूर्व की ओर मुड़ जाती है। ब्रज क्षेत्र में यमुना के तट पर बसा हुआ पहिला उल्लेखनीय स्थान शेरगढ़ है।

शेरगढ़ से कुछ दूर तक पूर्व की दिशा में बह कर फिर यह मथुरा तक दक्षिण दिशा में ही बहती है। मार्ग में इसके दोनों ओर पुराण प्रसिद्ध वन और उपवन तथा कृष्ण लीला स्थान विधमान हैं। यहाँ पर यह भाँट से वृन्दावन तक बल खाती हुई बहती है और वृन्दावन को यह तीन ओर से घेर लेती है। पुराणों से ज्ञात होता है, प्राचीन काल में वृन्दावन में यमुना की कई धाराएँ थीं, जिनके कारण वह लगभग प्रायद्वीप सा बन गया था। उसमें अनेक सुन्दर वनखंड और घास के मैदान थे, जहाँ भगवान श्री कृष्ण अपने साथी गोप बालकों के साथ गायें चराया करते थे।

वर्तमान काल में यमुना की एक ही धारा है और उसी के तट पर वृन्दावन बसा हुआ है। वहाँ मध्य काल में अनेक धर्माचार्यों और भक्त कवियों ने निवास कर कृष्णोपासना और कृष्ण भक्ति का प्रचार किया था। वृन्दावन में यमुना के किनारों पर बड़े सुन्दर घाट बने हुए हैं और उन पर अनेक मंदिर-देवालय, छतरियां और धर्मशालाएँ है। इनसे यमुना के तट की शोभा अधिक बढ़ जाती है। वृन्दावन से आगे दक्षिण की ओर बहती हुई यह नदी मथुरा नगर में प्रवेश करती है।

मथुरा यमुना के तट पर बसा हुआ एक एेसा ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान है, जिसकी दीर्घकालिन गौरव गाथा प्रसिद्ध है। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण ने अवतार धारण किया था, जिससे इसके महत्व की वृद्धि हुई है। यहाँ भी यमुना के तट पर बड़े सुन्दर घाट बने हुए हैं। यमुना में नाव से अथवा पुल से देखने पर मथुरा नगर और उसके घाटों का मनोरम द्रष्य दिखाई देता है। मथुरा में यमुना पर दो पक्के पुल बने हैं जिनमें से एक पर रेलगाड़ी चलती है तथा दूसरे पर सड़क परिवहन चलते हैं। मथुरा नगर की दक्षिणी सीमा पर अब गोकुल बैराज भी निर्मित कराया गया है जिसका उद्देश्य ब्रज के भूमिगत जल के स्तर को पुनः वापिस लाना और ब्रज की उपजाऊ भूमि को अधिकाधिक सिंचित करना है। विगत काल में यमुना मथुरा-वृन्दावन में एक विशाल नदी के रुप में प्रवाहित होती थी, किन्तु जबसे इससे नहरें निकाली गयी हैं, तब से इसका जलीय आकार छोटा हो गया है। केवल वर्षा ॠतु मे यह अपना पूर्ववर्ती रुप धारण कर लेती है। उस समय मीलों तक इसका पानी फैल जाता है।

मथुरा से आगे यमुना के तट पर बायीं ओर गोकुल और महावन जैसे धार्मिक स्थल हैं तथा दायें तट पर पहले औरंगाबाद और उसके बाद फरह जैसे ग्राम हैं। यहाँ तक यमुना के किनारे रेतीले हैं, किन्तु आगे पथरीले और चटटानी हो जाते हैं, जिससे जल धारा बल खाती हुई मनोरम रुप में प्रवाहित होती है।

सादाबाद तहसील के ग्राम अकोस के पास यमुना मथुरा जिले की सीमा से बाहर निकलती है और फिर कुछ दूर तक मथुरा और आगरा जिलों की सीमा निर्मित करती है। सादाबाद तहसील के मंदौर ग्राम के पास यह आगरा जिले में प्रवेश करती है। वहाँ इसमें करबन और गंभीर नामक नदियां आकर मिलती हैं।

आगरा जिले में प्रवेश करने पर नगला अकोस के पास इसके पानी से निर्मित कीठम झील है, जो सैलानियों के लिये बड़ी आकर्षक है। कीठम से रुनकता तक यमुना के किनारे एक संरक्षित वनखंड का निर्माण किया गया है, जो 'सूरदास वन' कहलाता है। रुनकता के समीप ही यमुना तट पर 'गोघात' का वह प्राचीन धार्मिक स्थल है, जहाँ महात्मा सूरदास ने १२ वर्षों तक निवास किया था और जहाँ उन्होंने महाप्रभु बल्लभाचार्य से दीक्षा ली थी।

यमुना के तटवर्ती स्थानों में दिल्ली के बाद सर्वाधिक बड़ा नगर आगरा ही है। यह एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक, व्यापारिक एंव पर्यटन स्थल है, जो मुगल सम्राटों की राजधानी भी रह चुका है। यह यमुना तट से काफी ऊँचाई पर बसा हुआ है - यमुना दिल्ली के पूर्वी भाग में बहती है, उत्तर से दक्षिण की तरफ़। यहाँ पर भी यमुना पर दो पुल निर्मित हैं। आगरा में यमुना तट पर जो इमारतें है, मुगल बादशाहों द्वारा निर्मित किला और ताज महल पर्यटकों के निमित्त अत्याधिक प्रसिद्ध हैं।

आगरा नगर से आगे यमुना के एक ओर फिरोजाबाद और दूसरी ओर फतेहबाद जिला और तहसील स्थित है। उनके बाद बटेश्वर का सुप्रसिद्ध धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल आता है, जहाँ ब्रज की सांस्कृतिक सीमा समाप्त होती है। बटेश्वर का प्राचीन नाम 'सौरपुर' है, जो भगवान श्री कृष्ण के पितामह शूर की राजधानी थी। यहाँ पर यमुना ने बल खाते हुए बड़ा मोड़ लिया है, जिससे बटेश्वर एक द्वीप के समान ज्ञात होता है। इस स्थान पर कार्तिक पूर्णमा को यमुना स्नान का एक बड़ा मेला लगता है।

बटेश्वर से आगे इटावा एक नगर के रुप में यमुना तट पर बसा हुआ है। यह भी आगरा और बटेश्वर की भाँति ऊँचाई पर बसा हुआ है। यमुना के तट पर जितने ऊँचे कगार आगरा और इटावा जिलों में हैं, उतने मैदान में अन्यत्र नहीं हैं। इटावा से आगे मध्य प्रदेश की प्रसिद्ध नदी चम्बल यमुना में आकर मिलती है, जिससे इसका आकार विस्तीर्ण हो जाता है, अपने उद्गम से लेकर चम्बल के संगम तक यमुना नदी, गंगा नदी के समानान्तर बहती है। इसके आगे उन दोनों के बीच के अन्तर कम होता जाता है और अन्त में प्रयाग में जाकर वे दोनों संगम बनाकर मिश्रित हो जाती हैं।

चम्बल के पश्चात यमुना नदी में मिलने वाली नदियों में सेंगर, छोटी सिन्ध, बतवा और केन उल्लेखनीय हैं। इटावा के पश्चात यमुना के तटवर्ती नगरों में काल्पी, हमीर पुर और प्रयाग मुख्य है। प्रयाग में यमुना एक विशाल नदी के रुप में प्रस्तुत होती है और वहाँ के प्रसिद्ध ऐतिहासिक किले के नीचे गंगा में मिल जाती है। प्रयाग में यमुना पर एक विशाल पुल निर्मित किया गया है, जो दो मंजिला है। इसे उत्तर प्रदेश का विशालतम सेतु माना जाता है। यमुना और गंगा के संगम के कारण ही, प्रयाग को तीर्थराज का महत्व प्राप्त हुआ है। यमुना नदी की कुल लम्बाई उद्गम से लेकर प्रयाग संगम तक लगभग ८६० मील है।

सांस्कृतिक महत्व

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भारतवर्ष की सर्वाधिक पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना की गणना गंगा के साथ की जाती है। यमुना और गंगा के दो आब की पुण्यभूमि में ही आर्यों की पुरातन संस्कृति का गौरवशाली रुप बन सका था। ब्रजमंडल की तो यमुना एक मात्र महत्वपूर्ण नदी है। जहाँ तक ब्रज संस्कृति का संबध है, यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है। वस्तुतः यह ब्रज संस्कृति की सहायक, इसकी दीर्ध कालीन परम्परा की प्रेरक और यहाँ की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार रही है।

पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार यह देम में यमुना जी के एक हजार नामों से उसकी पशस्ति का गायन किया गया है। ३ यमुना के परमभक्त इसका दैनिक रुप से प्रति दिन पाठ करते हैं।

ब्रजभाषा के भक्त कवियों और विशेषतः वल्लभ सम्प्रदायी कवियों ने गिरिराज गोवर्धन की भाँति यमुना के प्रति भी अतिशय श्रद्धा व्यक्त की है। इस सम्प्रदाय का शायद ही कोई कवि हो, जिसने अपनी यमुना के प्रति अपनी काव्य - श्रद्धांजलि अर्पित न की हो। उनका यमुना स्तुति संबंधी साहित्य ब्रजभाषा भक्ति काव्य का एक उल्लेखनीय अंग है।


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